
"खादी" का अर्थ है कपास, रेशम या ऊन के हाथ कते सूत अथवा इनमें से दो या सभी प्रकार के सूतों के मिश्रण से भारत में हथकरघे पर बुना गया कोई भी वस्त्र। "ग्रामोद्योग" का अर्थ है, ऐसा कोई भी उद्योग जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हो तथा जो विद्युत के उपयोग या बिना उपयोग के कोई माल तैयार करता हो या कोई सेवा प्रदान करता हो तथा जिसमें स्थायी पूँजी निवेश (संयंत्र तथा मशीनरी एवं भूमि भवन में) प्रति कारीगर या कर्मी पचास हजार रूपये से अधिक न हो। इस हेतु परिभाषित "ग्रामीण क्षेत्र में" समस्त राजस्व ग्राम तथा 20 हजार तक की आवादी वाले कस्बे सम्मिलित है। प्रदेश में खादी ग्रामोद्योग सेक्टर के चतुर्मुखी विकास के लिए उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग अधिनियम संख्या 10, 1960 के अन्तर्गत बोर्ड का गठन एक सलाहकार बोर्ड के रूप में हुआ था। तदोपरान्त उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड संशोधित अधिनियम संख्या 64, 1966 द्वारा उपरोक्त अधिनियम को संशोधित किया गया जिसके फलस्वरूप बोर्ड को खादी ग्रामोद्योग की योजनाओं को प्रदेश में क्रियान्वित करने का अधिकार प्राप्त हो गया। इस प्रकार खादी ग्रामोद्योग बोर्ड एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में पुनर्गठित हुआ तथा अप्रैल 1967 में उद्योग निदेशालय, उ0प्र0 से समस्त खादी ग्रामोद्योगी योजनाये बोर्ड को स्थानान्तरित कर दी गयी। इससे पूर्व ये योजनायें प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाकाल में उद्योग निदेशालय के अन्तर्गत संचालित की जा रही थी।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग, भारत में खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय के अन्दर आने वाली एक शीर्ष संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य "ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है,


